अक्सर हमने यह देखा है की हनुमान जी को बाल ब्रह्मचारी कहकर पुकारा जाता है | लेकिन यह बात बहुत ही कम लोग जानते है की हनुमान जी का विवाह भी हो चूका है वह अविवाहित नहीं है | प्रारम्भ में हमे भी इस बात पर विश्वास नहीं हुआ था | लेकिन आज के आर्टिकल को पढ़ने के बाद आप भी इस पर विश्वास लेंगे की हनुमान जी की शादी हो चुकी है | वे बाल ब्रह्मचारी नहीं है | इसके अतिरिक्त उनके एक बेटा भी है | आईये हनुमान जी के जीवन से जुड़ा यह रोचक तथ्य जाने...
बात उस समय की है जब हनुमान जी अपने गुरु सूर्यदेव के साथ युद्ध कलाये सिख रहे थे | उस समय सूर्य देव ने बजरंगबली को 9 कलाये सिखाने का वचन दिया था | लेकिन वे उन्हें 5 कलाये ही सीखा सके | हनुमान जी ने पूछा की आप मुझे शेष 4 कला क्यों नहीं सीखा रहे तो उन्होंने जवाब दिया की यह कलाये वह व्यक्ति ही सीख सकता है, जिसका विवाह हो गया हो | तुम तो कभी विवाह करोगे नहीं तो मैं तुम्हे यह कलाये कैसे सीखा सकता हूँ ?
हनुमान जी बहुत गंभीर विचार करने के बाद शादी करने के लिए तैयार हो गए | सूर्य देव ने उन्हें अपनी बेटी सुवर्चला से विवाह करने का प्रस्ताव रखा | हनुमान जी उसे तुरंत मान गये | इसके पश्चात् उन्होंने भगवान् सूर्य की बेटी सुवर्चला से विवाह किया है | इस बात का प्रमाण इस बात से मिलता है की हनुमान जी और सुवर्चला का आंध्रप्रदेश के खम्मम जिले में एक मंदिर भी बना हुआ है | जहां हनुमान जी सुवर्चला के साथ विराजमान है | जो यह सिद्ध करता है की हनुमान जी ब्रह्मचारी नहीं बल्कि विवाहित थे |
अब यह प्रश्न आता है की हनुमान जी के संतान कैसे उत्पन्न हुई | इस कथा का वर्णन महर्षि वाल्मीकि ने अपनी पुस्तक सम्पूर्ण रामायण और महर्षि तुलसीदास ने अपनी पुस्तक "राम चरित मानस" में इसका वर्णन किया है | वे कहते है की जब रावण की बिना अनुमति के लंका में प्रवेश करने के अपराध में हनुमान जी की पूंछ में आग लगा दी थी तो उन्होंने सारी लंका जलाकर सागर में जा पूंछ बुझाई थी | पूंछ के साथ हनुमान जी काफी पसीने में भी भीगे हुए थे | इस कारण पूंछ बुझाते समय उनका पसीना गिरकर समुद्र में पड़ गया | इस पसीने को मोती समझकर एक मछली ने निगल लिया | जिससे मछली के गर्भ रह गया |
जब यह जल बहता हुआ पाताल लोक गया तो वहां के राक्षसों ने इस मछली को निकाल लिया | जब उसे पकाकर खाने के लिए उसे काटा तो उसमे से एक बच्चा निकला | जिसे देखकर राक्षस घबरा गये | उन्होंने उस बच्चे को पाताललोक के स्वामी अहिरावण को दे दिया | इसके पश्चात् उन्होंने उसका नाम मकरध्वज रखा और उसे पाताललोक लोक का द्वारपाल बना दिया |
इस कहानी पर विश्वास करने से इसलिए भी इनकार नहीं किया जा सकता है की यह कहानी खुद महर्षि वाल्मीकि ने लिखी है | इसलिए, मकरध्वज के अस्तित्व पर कोई भी प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकता है | इस बात का खुलासा उस समय होता है जब राम और लक्ष्मण को अहिरावण पाताललोक ले जाता है | उस समय हनुमान जी की मुलाक़ात मकरध्वज से होती है |